Monday, March 10, 2008

Cactus

Another wonderful poem written by Dr. Harivanshrai "Bachchan" Srivastav. This poem makes your realize that it is not a sin to not be famous in this world. Here are the lyrics in Hindi:
रात एकाएक टूटी नींद तो क्या देखता हूँ,
गगन से जैसे उतर कर एक तारा, कैक्टस की झाडियों मे आ गिरा है

रात एकाएक टूटी नींद तो क्या देखता हूँ,
गगन से जैसे उतर कर एक तारा, कैक्टस की झाडियों मे आ गिरा है
निकट जाकर देखता हूँ, एक अद्भुत फूल कांटो मे खिला है

हाऐ कैक्टस! दिवस मे तुम खिले होते
रश्मियाँ कितनी निछावर हो गई होती तुम्हारी पंखुरियों पर
पवन अपनी गोद मे तुमको झुला कर धन्य होता
गंध भीनी बाटता फिरता द्रुमो मे, भृग आते घेरते तुमको
अनवरत फेरते माला सुयश की गुन तुम्हारा गुनगुनाते

धैर्य से सुन बात मेरी, कैक्टस ने कहाँ धीमे से
किसी विवशता से खिलता हूँ, खुलने की साध तो नही है
जग मे अनजाना रह जाना, कोई अपराध तो नही है?

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